1. सब प्रशंसा अल्लाह के लिए हैं, जो उत्पन्न करने वाला है आकाशों तथा धरती का, (और) बनाने वाला[1726] है संदेशवाहक फ़रिश्तों को दो-दो, तीन-तीन, चार-चार परों वाले। वह अधिक करता है उत्पत्ति में, जो चाहता है, निःसंदेह अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।
1. सब प्रशंसा अल्लाह के लिए हैं, जो उत्पन्न करने वाला है आकाशों तथा धरती का, (और) बनाने वाला[1726] है संदेशवाहक फ़रिश्तों को दो-दो, तीन-तीन, चार-चार परों वाले। वह अधिक करता है उत्पत्ति में, जो चाहता है, निःसंदेह अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।
2. जो खोल दे अल्लाह लोगों के लिए अपनी दया,[1727] तो उसे कोई रोकने वाला नहीं तथा जिसे रोक दे, तो कोई खोलने वाला नहीं उसका, उसके पश्चात् तथा वही प्रभावशाली चतुर है।
3. हे मनुष्यो! याद करो अपने ऊपर अल्लाह के पुरस्कार को, क्या कोई उत्पत्तिकर्ता है अल्लाह कि सिवा, जो तुम्हें जीविका प्रदान करता हो आकाश तथा धरती से? नहीं है कोई वंदनीय, परन्तु वही। फिर तुम कहाँ फिरे जा रहे हो?
4. और यदि वे आपको झुठलाते हैं, तो झुठलाये जा चुके हैं बहुत-से रसूल आपसे पहले और अल्लाह ही की ओर फेरे जायेंगे सब विषय।[1728]
5. हे लोगो! निश्चय अल्लाह का वचन सत्य है। अतः, तुम्हें धोखे में न रखे सांसारिक जीवन और न धोखे में रखें अल्लाह से, अति प्रवंचक (शैतान)।
6. वास्तव में, शैतान तुम्हारा शत्रु है। अतः, तुम उसे अपना शत्रु ही समझो। वह बुलाता है अपने गिरोह को इसीलिए ताकि वे नारकियों में हो जायें।
7. जो काफ़िर हो गये, उन्हीं के लिए कड़ी यातना है तथा जो ईमान लाये और सदाचार किये, तो उनके लिए क्षमा तथा बड़ा प्रतिफल है।
8. तथा क्या शोभनीय बना दिया गया हो जिसके लिए उसका कुकर्म और वह उसे अच्छा समझता हो? तो अल्लाह ही कुपथ करता है, जिसे चाहे और सुपथ दिखाता है, जिसे चाहे। अतः, न खोयें आप अपना प्राण इनपर संताप के कारण। वास्तव में, अल्लाह जानता है, जो कुछ वे कर रहे हैं।
9. तथा अल्लाह वही है, जो वायु को भेजता है, जो बादलों को उठाती है, फिर हम हाँक देते हैं उन्हें, निर्जीव नगर की ओर। फिर जीवित कर देते हैं उनके द्वारा धरती को, उसके मरण के पश्चात्। इसी प्रकार, फिर जीना (भी)[1729] होगा।
11. अल्लाह ने उत्पन्न किया तुम्हें मिट्टी से, फिर वीर्य से, फिर बनाये तुम्हें जोड़े और नहीं गर्भ धारण करती कोई नारी और न जन्म देती है, परन्तु उसके ज्ञान से और नहीं आयु दिया जाता कोई अधिक और न कम की जाती है उसकी आयु, परन्तु वह एक लेख में[1732] है। वास्तव में, ये अल्लाह पर अति सरल है।
12. तथा बराबर नहीं होते दो सागर, ये मधुर प्यास बुझाने वाला है, रुचिकर है इसका पीना और वो (दूसरा) खारी कड़वा है तथा प्रत्येक में से तुम खाते हो ताज़ा माँस तथा निकालते हो आभूषण, जिसे पहनते हो और तुम देखते हो नाव को उसमें पानी फाड़ती हुई, ताकि तुम खोज करो अल्लाह के अनुग्रह की और ताकि तुम कृतज्ञ बनो।
13. वह प्रवेश करता है रात को दिन में तथा प्रवेश करता है दिन को रात्रि में तथा वश में कर रखा है सूर्य तथा चन्द्रा को, प्रत्येक चलते रहेंगे एक निश्चित समय तक। वही अल्लाह तुम्हारा पालनहार है। उसी का राज्य है तथा जिन्हें तुम पुकारते हो, उसके सिवा, वे स्वामी नहीं हैं एक तिन्के के भी।
14. यदि तुम उन्हें पुकारते हो, तो वे नहीं सुनते तुम्हारी पुकार को और यदि सुन भी लें, तो नहीं उत्तर दे सकते तुम्हें और प्रलय के दिन वे नकार देंगे तुम्हारे शिर्क (साझी बनाने) को और आपको कोई सूचना नहीं देगा सर्वसूचित जैसी।[1733]
15. हे मनुष्यो! तुम सभी भिक्षु हो अल्लाह के तथा अल्लाह ही निःस्वार्थ, प्रशंसित है।
16. यदि वह चाहे, तो तुम्हें ध्वस्त कर दे और नई[1734] उतपत्ति ले आये।
17. और ये नहीं है अल्लाह पर कुछ कठिन।
18. तथा नहीं लादेगा कोई लादने वाला, दूसरे का बोझ, अपने ऊपर[1735] और यदि पुकारेगा कोई बोझल, उसे लादने के लिए, तो वह नहीं लादेगा उसमें से कुछ, चाहे वह उसका समीपवर्ती ही क्यों न हो। आप तो बस उन्हीं को सचेत कर रहे हैं, जो डरते हों अपने पालनहार से बिन देखे तथा जो स्थापना करते हैं नमाज़ की तथा जो पवित्र हुआ, तो वह पवित्र होगा अपने ही लाभ के लिए और अल्लाह ही की ओर (सबको) जाना है।
19. तथा समान नहीं हो सकता अंधा तथा आँख वाला।
20. और न अंधकार तथा प्रकाश।